रायपुर। शिक्षकों की पोस्टिंग घोटाले में कल हाई कोर्ट में सरकार की तरफ से कहा गया कि पोस्टिंग में गड़बड़झाले की वजह से स्कूलों की व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसकी वजह से बड़ी संख्या में स्कूल या तो शिक्षक विहीन हो गए हैं या फिर एकल शिक्षकीय हो गए हैं। यदि इन अधिकारिता विहीन एवं नियम विपरित किये गये संशोधनों को निरस्त नहीं किया गया तो शिक्षा व्यवस्था पर पड़े हुए दुष्प्रभाव से उबरना विभाग के लिये असंभव होगा साथ ही शिक्षा विभाग में अनैतिक राजनैतिक हस्तक्षेप लगातार होता रहेगा और भ्रष्टाचार की प्रवृति को भी बढ़ावा मिलेगा। फलस्वरूप दूरस्थ एवं दुर्गम स्थानों में स्थापित शालाओं में शिक्षकों का पदांकन किया जाना असंभव होगा। इससे छत्तीसगढ़ के नवनिहालों का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा।संभागीय आयुक्त की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ है कि संभागीय संयुक्त संचालको द्वाराजारी गये संशोधन आदेश अधिकारिता विहीन एवं गैर कानूनी है। संभाग आयुक्तों की रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हुआ है कि इन आदेशों के गैर कानूनी होने के साथ साथ राज्य में निम्नलिखित स्थिति भी उत्पन्न हुई है।ऽ अब राज्य में 450 शालाएं शिक्षक विहीन एवं 6151 शालाएं एकल शिक्षकीय हो गई है।ऽ राज्य में यह धारणा प्रबल हुई है कि सिफारिशों एवं धन बल के बदौलत गैर कानूनी तरीके से अपनी पदस्थापना चाहे गये स्थान पर कराई जा सकती है। 13. उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत राज्य शासन द्वारा 4 संभागीय संयुक्त संचालाकों ( 1 श्री के0 कुमार, रायपुर 1.2 श्री हेमंत उपाध्याय, सरगुजा । 3 श्री एस. के प्रसाद, बिलासपुर 4 श्री गिरधर मरकाम, दुर्ग ) एवं अन्य संबंधित अधिकारी / कर्मचारियों को निलंबित किया गया है।संबंधित अधिकारियों को निलंबित किये जाने के साथ-साथ उनके द्वारा नियम विरूद्ध किये गये 2723 संशोधनों को निरस्त करते हुये संबंधित शिक्षकों को ओपन काउंसलिंग के माध्यम से किये गये पदांकन वाली संस्था में 10 दिन के भीतर कार्यभार ग्रहण करने के आदेश दिये गये है।उल्लेखनीय है कि शासन द्वारा केवल संशोधन पदांकन आदेशों को ही निरस्त किया गया है, शिक्षकों की पदोन्नति निरस्त नहीं की गई है और न ही किसी शिक्षकों को पदोन्नति से वंचित किया गया है अपितु शिक्षक को ओपन काउंसलिंग के माध्यम से पदांकित मूल शाला में भेजकर राज्य के विभिन्न शालाओं में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु प्रयास किया गया है।उल्लेखनीय है कि संभाग आयुक्तों से कराई गई उपरोक्त जांच प्रारंभिक जांच है शासन द्वारा छ०ग० सिविल वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील नियम 1966 के तहत विभागीय जांच नियमानुसार संस्थित किये जाने हेतु कार्यवाही प्रचलन में है। इस जांच के उपरांत, संयुक्त संचालकों द्वारा किये गये उपरोक्त संशोधनों से उत्पन्न विसंगतियों के संबंध में और अधिक जानकारी प्राप्त हो सकेगी। यदि इन अधिकारिता विहीन एवं नियम विपरित किये गये संशोधनों को निरस्त नहीं किया गया तो शिक्षा व्यवस्था पर पड़े हुए दुष्प्रभाव से उबरना विभाग के लिये असंभव होगा साथ ही शिक्षा विभाग में अनैतिक राजनैतिक हस्तक्षेप लगातार होता रहेगा और भ्रष्टाचार की प्रवृति को भी बढ़ावा मिलेगा। फलस्वरूप दूरस्थ एवं दुर्गम स्थानों में स्थापित शालाओं में शिक्षकों का पदांकन किया जाना असंभव होगा जिससे छ०ग० के नवनिहालों का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा।
इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने निम्न बिंदुओं को आधार बनाया...
1. शासन द्वारा दूषित आदेश पारित किया गया है।
2. याचिकाकर्ताओं को उनका पक्ष रखने का अवसर नही दिया गया।
3. एकपक्षीय कार्यमुक्त किया गया।
4. गैर वैधानिक आदेश जारी किये गये भर्ती नियम 2019 के अनुसार संयुक्त संचालक सक्षम अधिकारी है।
5. दूरी ज्यादा होने के कारण आवेदन किया गया था जो मान्य करते हुए सक्षम अधिकारी द्वारा संशोधन आदेश जारी किया गया। कार्यभार ग्रहण करने के बाद भी एकतरफा कार्यमुक्त किया गया।
6. पदांकन के बाद संशोधन हेतु प्रस्तुत आवेदन को स्वीकार्य कर संशोधन आदेश जारी किया गया।
7. पदांकन आदेश में संशोधन किये जा रहे है यह जानकारी होने पर होने पर आवेदन प्रस्तुत किया गया जिसे सक्षम अधिकारी द्वारा मान्य करते हुए संशोधन किया गया। 8. राज्य द्वारा क्षेत्राधिकार से बाहर जा कर कार्यमूक्त आदेश जारी किया गया।
9. छोटा बच्चा होने के कारण संशोधन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया जिसे मान्य करते हुए पदांकन आदेश संशोधित किया गया उक्त आदेश को अवैधानिक तौर पर राज्य द्वारा निरस्त किया गया।
10. संभागीय संयुक्त संचालक भर्ती नियम 2019 के तहत स्थानांतरण एवं पदोन्नति हेतु सक्षम अधिकारी है। राज्य का निरस्तीकरण आदेश गलत है।"